Friday, September 18, 2009

नैनीताल के इतिहास का काला दिन है 18 सितम्बर

नैनीताल : भूस्खलन से पहले 

18 सितम्बर 1880 को नैनीताल के इतिहास में कभी भुलाया नहीं जा सकता क्योंकि इस दिन नैनीताल का अभी तक का सबसे बड़ा भूस्खलन हुआ था जिसमें करीब 151 लोगों की जान चली गयी थी।

एटकिंशन गजेटियर के अनुसार 14 सितम्बर से ही काफी तेज बारिश होने लगी थी और 18 सितम्बर तक लगभग 33 इंच बारिश हो चुकी थी। बारिश के साथ तेज हवायें भी चल रही थी जिस कारण सड़के टूटने लगी और पानी रिस-रिस कर चट्टानों के अंदर जाने लगा था। जो धीरे-धीरे उग्र रूप लेता चला गया और इसने चट्टनों को खिसकाना शुरू कर दिया। पानी के रास्ते में जो भी कुछ आया वो इसकी भेंट चढ़ता गया।

उस समय इस स्थान पर बना विक्टोरिया होटल, एस्मबली रूम और नैना देवी मंदिर पूरी तरह इस भूस्खलन में ध्वस्त हो गये। यह मलबा जब नैनी झील में गया तो इतनी तेज लहर उठी की तल्लीताल पोस्ट ऑफिस के पास खड़े 2-3 लोग भी इन लहरों में बह गये। देखते-देखते पूरा का पूरा पहाड़ मलबे के ढेर में बदल गया। इस भूस्खलन में सिर्फ एक ही काम अच्छा हुआ और वो है मल्लीताल में फ्लैट्स का बनना। यह फ्लैट इस भूस्खलन से ही बना है।

इस भूस्खलन में 151 लोगों की जानें चली गयी। जिसमें 34 यूरोपियन और यूरेसियन के साथ-साथ कई भारतीय नागरिक भी मारे गये। इनमें से किसे के भी शव नहीं मिल पाये। इन मृतकों की याद में आज के बोट हाउस क्लब के सामने एक फब्बारा बनाया गया था जिनमें इन मृतकों के नाम थे पर आज लापरवाहियों के चलते वो नाम पट्टी गायब हो गयी है। मल्लीताल के सेंट जोन्स इन विल्डनैस चर्च में भी इन मृतकों के नाम की पटि्या देखी जा सकती है।

इस भूस्खलन में मुख्य कारण था इस स्थान पर हुआ निर्माण कार्य जिसके लिये बहुत से पेड़ काटे गये थे और मकान बनाते समय पानी के प्रवाह के लिये कोई भी पुख्ता इंतजाम नहीं किये गये जिस कारण पानी यहां-वहां रिसने लगा और चट्टानों को कमजोर करता चला गया। भूस्खलन के बाद इसके कारणों का पता किया गया और सुरक्षा के उपायों पर ध्यान दिया गया जिसके चलते पहाड़ियों पर नालों का निर्माण किया गया। इससे बरसात का पानी बहता हुआ इन नालों के रास्ते होता हुआ झील में आ जाता था। इन नालों में बीच-बीच में गड्ढे भी बनाये गये ताकि जितना भी मलबा हो वह इन गडढों में रुक जाये और झील में सिर्फ पानी ही जा पाये। इसके साथ-साथ इन पहाड़ियों में पेड़ तथा घास आदि को काटने पर भी पाबंदी लगा दी गयी।

पर आज की तारीख में इन नियमों की अनदेखी की जाने लगी है और नालों की सुरक्षा और साफ-सफाई की तरफ भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जिसके चलते यहां बेतरतीब निर्माण कार्य जारी है और पेड़ों का कटान भी किया जा रहा है। अगर यह सब यूंही चलता रहा तो हो सकता है कि एक और 18 सितम्बर 1880 जल्दी ही सामने आ जाये।

नैनीताल : भूस्खलन के बाद (1883)



11 comments:

आशीष खण्डेलवाल (Ashish Khandelwal) said...

ऐसा कभी नहीं होना चाहिए कि 18 सितम्बर 1880 की पुनरावृत्ति हो.. हां पर्यावरण को किसी तरह का नुकसान नहीं पंहुचाया जाना चाहिए.. हैपी ब्लॉगिंग

Unknown said...

aap humesha hi nyi nayi jankari leke aati hai apne blog pe

ghughutibasuti said...

पर्यावरण का ध्यान रखे बिना किया गया विकास विनाश ही लाएगा.
घुघूती बासूती

Unknown said...

Vineeta tumne is din ko yaad karke bahut achha kaam kiya hai. tumhara kahna bilkul sahi hai ki yadi 18 september 1880 se sabak nahi liya to ek aur 18 sep humare samne jald hi ayega

ताऊ रामपुरिया said...

पर्यावरण को सहेजना आज पहली प्राथमिकता होनी चाहिये. बहुत सुंदर पोस्ट.

रामराम.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

जो होता है अच्छा होता है अगर फ्लेट्स नहीं बनता तो नैनीताल में कार पार्किंग कहाँ बनता .

मुनीश ( munish ) said...

If we do not take lessons from history, it REPEATS itself. GOD FORBID LEST IT SHOULD HAPPEN AGAIN!

Manish Kumar said...

Shukriya is jaankari ko sajha karne ke liye. Niyamon ki undekhi ko rokne ka kaam Nainitaal ke nagrik hi kar sakte hain. Aapke is lekh se wahan kelogon mein is baat ke pratiawareness badhegi.

शरद कोकास said...

सही है मानव अपने इतिहास की अनदेखी करने के कारण ही विनाश की ओर बढ़ रहा है -अब भी समय है वरना ..

निर्मला कपिला said...

हमेशा की तरह फिर से एक अच्छी जानकारी। अपने शहर के प्रति लगाव समझ मे आता है बहुत बहुत शुभकामनायें और आशीर्वाद

P.N. Subramanian said...

आपने बिलकुल ठीक कहा है. ऐसे पड़ी इलाकों में वृक्षों को काटना महंगा पड़ता ही है. भूमि को वे ही तो बांधे रहते हैं. सुन्दर पोस्ट. आभार