Friday, June 12, 2009

एक छोटी सी ट्रेकिंग ऐसी भी - 2

किलबरी बाले रास्ते में तो हम लोग सिर्फ अपने जूतों को ही देखते रहे क्योंकि आजकल इस रास्ते में बेतहाशा जोंके भरी पड़ी थी और वो अपने पूरे घर-खानदान के साथ हमसे जंगल की चुंगी वसूलने के लिये तैयार बैठी हुई थी। हमने भी यही सोचा कि उनके इलाके में आये हैं तो चुंगी तो देनी ही पड़ेगी। खैर जोंके झाड़ते-झाड़ते हम लोग आगे बढ़ रहे थे और साथ में प्लानिंग भी कर रहे थे कि अगली बार कभी ऐसे मौसम में आये तो अपने जूतों में नमक-तल की मालिश करके लायेंगे और मोजों को तम्बाकू के पानी में भिगा के लायेंगे ताकि अपने ही जूतों को देखने के अलावा थोड़ा यहां-वहां भी देख लें।

हम लोग इस रास्ते पर थोड़ा आगे बड़े ही थे आसपास के गांवों से आने वाले कुछ लोगों ने बताया कि किलबरी का रास्ता बहुत ही ज्यादा खराब हो रखा है इसलिये हमने समझदारी इसमें ही समझी की किलबरी को छोड़ कर पंगूट की तरफ निकल जाया जाये। बरसात का मौसम होने के कारण रास्ते में कई जगह पानी के सोते निकले हुए थे। इन सोतों के पानी के आगे तो बिसलरी-विसलरी भी कुछ नहीं है। हम इन सोतों से ही अपनी पानी की बोतलें भर रहे थे। वैसे तो इन जंगलों में अभी भी काफी हर्बल पौंधे हैं लेकिन अब लोगों ने इनको उजाड़ना भी शुरू कर दिया है जिस कारण शायद आने वाले समय में इनकी संख्या में कमी भी होती जाये। जोंकें अभी भी हम लोगों को परेशान किये जा रही थी। हर पांच मिनट में हम लोग अपने पैरों से 4-5 जोंकों को तो निकाल ही रहे थे।

रास्ते में आसपास के गांव के कुछ लोग ही किसी किसी समय चलते हुए नजर आ रहे थे। इसी बीच हल्की-हल्की बूंदा-बांदी भी शुरू हो गई। पर हमारी किस्मत अच्छी थी कि ज्यादा तेज बारिश नहीं हुई। इसलिये हम लोग आगे बढ़ते रहे। करीब 1-2 घंटे बाद हम लोग पंगूट पहुंच गये। यहां पर हम लोग बैठ के थोड़ा सुस्ता ही रहे थे कि हमारी नजर हमारे साथ वाले के पैर में पड़ी जो कि खून से लथपथ था। जब हमने उसका पैर देखा तो पता चला की एक जोंक उसके पैर में बहुत गहरे तक घुसी हुई है और बुरी तरह उसके पैर को काट लिया है। इस जोंक को जब बाहर निकाला तो वो फूल के बिल्कुल कुप्पा हो रखी थी।
जोंक की यह फोटो साभार गुगल
हम अपने इसी काम में लगे ही हुए थे कि एक अंग्रेज महिला अपने दो बच्चों के साथ हमारे पास आ गयी। जोकों को देख कर उसे जो ताजुब्ब हुआ वो तो उसके चेहरे पर साफ नजर आ ही रहा था पर सबसे ज्यादा मजा तो तब आया जब उसने अपने बच्चों को जोंक दिखाते हुए कहा - `हाउ इन्ट्रस्टिंग´ और उसके बाद वो हंसते हुए चली गयी। हमारे जिसे दोस्त के पैर में जोंक ने बहुत जोर से काटा था उसने हम लोगों की तरफ देखते हुए बोला - यहां हमारी जान जा रही है और आंटी को ये सब इंन्ट्रस्टिंग लग रहा है। यहां पर आराम से बैठ के हमने अपने साथ में लाया हुआ खाना खाया और बातें करने लगे। किलबरी नहीं जा पाने की थोड़ी हताशा तो थी लेकिन फिर हम नैनीताल की ओर वापस लौट लिये।

आते समय हमने एक सड़क वाला रास्ता पकड़ा जिसमें हम जोंको के आतंक से बच गये। यहां से नैनीताल की दूरी करीब 11-12 किमी. की थी। यहां से हम थोड़ा यहां-वहां भी देख सके। कभी-कभी सड़क के दोनों ओर घने जंगल आ जा रहे थे तो कहीं से घाटियां दिख रही थी और कहीं से नजदीक के गांव नजर आ रहे थे। इन जंगलों में कई तरह की चिड़ियों की प्रजातियां है जिनमें से हमें हिमालयन वुड पैकर, लाफिंग थ्रस, मिनिविट, बुलबुल ही दिखायी दी। कहीं-कहीं पहाड़ी चट्टानों पर बुरांश के छोटे-छोटे पेड़ उग आये थे जिनमें से दो-एक पेड़ मेरे साथ वाले निकाल के अपने घर में लगाने के लिये लेकर भी आये।

हम लोग अपने हंसी मजाक के साथ आगे बढ़ रहे थे और वापस स्नोव्यू पहुंच गये। इस स्नोव्यू में दूर-दूर तक भी हिमालय का नामोनिशान नहीं था। यहां से हम सब लोगों को अपने-अपने रास्तों में जाना था इसलिये हम लोगों की एक छोटी सी बहस इस जगह भी शुरू हो गयी कि कौन सबसे ज्यादा चला ? और जब अच्छे से सोचा गया तो पता चला कि मेरा घर ही सबसे दूरी पे है तो मैं ही सबसे ज्यादा चलने वालों में नं वन रही और दूसरा नं मेरी दोस्त जो मेरे साथ स्टेशन से आयी थी उसका रहा। इस जगह से हम लोगों ने आपस में सबसे विदा ली और अपने-अपने घरों को चल दिये।

समाप्त