Tuesday, October 27, 2009

पहाड़ों में पाये जाने वाली अनमोल जड़ी है यार-छा-गम्बू



यार-छा-गम्बू यार-छा-गम्बू का तिब्बती में अर्थ होता है `गर्मियों में घास, सर्दियों में कीड़ा।´ इसके बारे में कहा जाता है कि यह ऐसी विचित्र जड़ी-बूटी है, जो  सर्दियों के छ: महीने कीड़े के रूप में मृत रहती है और गर्मियों के छ: महीनों में जड़ी-बूटी बन जाता है। इस का लैटिन नाम `कार्डीसेप्स साईनेनसिस´ है। कार्डीसेप्स का अर्थ होता है मुद्गराकार शाखायुक्त। यह परजीवी कवक है, जिसमें छोटे-छोटे छेद होते हैं और इसका रंग चितकबरी होता है।

यह कवक घास वाली जमीन व बर्फ के पहाड़ों आस-पास मृत लारवा व कीड़ों में बहुत आसानी से उग जाता है। इसी कारण इसे `कीड़ा-जड़ी´ भी कहते हैं। यह बहुमूल्य कीड़ा जड़ी भारत के हिमालय क्षेत्रों के साथ-साथ तिब्बत, नेपाल, सिक्कम व भूटान आदि के पहाड़ी क्षेत्रों, बुग्यालों तथा ग्लेशियर आदि में बहुलता से उपलब्ध होता है। इन स्थानों के लोग इस कीड़ा-जड़ी का व्यापार करने के लिये इन जगहों में जाकर इसे इकट्ठा करते हैं।

तिब्बती लोगों में ऐसा कहा जाता है कि यदि `यार-छा-गम्बू´ को स्थानीय शराब या किसी अन्य पेय पदार्थ में डालकर पिया जाय यह शक्तिवर्द्धक का काम करता है। यह जड़ी अस्थमा व कैंसर के मरीजों के लिये भी बेहद उपयोगी है।

ग्रर्मी शुरू होते ही इस मृत कीड़े के ऊपर दूब घास की जैसी हरी पत्तियाँ निकल जाती हैं, जिसे जमीन से मय कीड़े के उखाड़ लिया जाता है। कुछ साल पहले तक कोई भी इसके बारे में कुछ नही जानता था पर जब इस जड़ी की अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में जबर्दस्त माँग होने लगी तब लोगों में इसके प्रति आकर्षण बढ़ने लगा और इसे इकट्ठा करने की होड़ मच गयी। इस जड़ी की अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कीमत तीस हजार से एक लाख रुपया प्रति किलो तक है जिस कारण इसका और भी अधिक मनमाने ढंग से दोहन किया जाने लगा है।

उत्तराखण्ड में चमोली के रूपकुंड, औली, गुरस्यूँ टॉप, अलीसेरा-कुआँरी पास व नन्दा देवी जैव आरक्षित राष्ट्रीय पार्क तथा पिथौरागढ़ जिले के छिपलाकेदार, नंगलिग, दारमा व व्यासघाटी में यह जड़ी बहुतायत से मिल जाती है। स्थानीय चिकित्सा में इसके द्वारा लगभग 200 प्रकार की बिमारियों का इलाज बताया गया है। इसे उत्तराखंड में भी यार-छा-गम्बू नाम से ही जाना जाता है।

यदि पैसों के लालच में इसी रफ्तार से इसी जड़ी का दोहन होता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब ये धरती से गायब हो जायेगी। सरकार को चाहिये की वो इसके वैज्ञानिक दोहन व इसके संरक्षण पर ध्यान दे और युवाओं को इससे संबंधित रोजगार भी उपलब्ध करवाये ताकि इसका सही इस्तेमाल हो और देश का आर्थिक ढांचा भी मजबूत बने।