Wednesday, January 12, 2011

मेरी पिथौरागढ़ यात्रा - 2

मुझे लगा था कि पिथौरागढ़ में काफी ठंडी होगी पर यहां का मौसम नैनीताल के मौसम से कहीं ज्यादा अच्छा और सुहावना था। पिथौरागढ़ की समुद्रतल से उंचाई 4,967 फीट है। मैंने कुछ देर आराम किया और फिर हम लोग 4.30 बजे के लगभग पिथौरागढ़ के पशुपतिनाथ मंदिर की ओर निकल गये जो चंडाक वाली साइड में पड़ता है। यहां से शाम के समय हिमालय का नजारा काफी अच्छा दिखायी देता है। यहां जाते हुए पिथौरागढ़ का काफी अच्छा नजारा दिखायी दिया। इस जगह से पिथौरागढ़ को देखने में लगा कि वाकय पिथौरागढ़ बहुत खूबसूरत जगह है। हम करीब आधे घंटे में पहुंच गये थे। 

जिस समय हम पहुंचे उस समय थोड़ा अंधेरा सा होने लगा था पर फिर भी हिमालय में अच्छी रोशनी पड़ रही थी इसलिये कुछ अच्छे शाॅट्स मिल गये। पहले हमारा इरादा था कि पशुपतिनाथ मंदिर के अंदर से फोटो लेंगे पर इस समय मंदिर बंद हो चुका था। यहां से शोर घाटी का नजारा भी बिल्कुल साफ दिखायी दे रहा था। पिथौरागढ़ का इलाका शोर घाटी में आता है। मेरे दोस्त ने बताया कि यह कप के आकार का है इसलिये यहां मौसम अच्छा ही रहता है। कुछ समय यहां बिताने के बाद हम हमारे एक दोस्त के पहचान के भगवान दा की दुकान में आये।
भगवान दा के खेत में एक गुफा अभी कुछ समय पहले ही निकली है जिसे देखने के लिये हमने कल का दिन तय किया क्योंकि इस समय काफी अंधेरा हो गया था। भगवान दा ने जाते ही हमें खाने के लिये शहद दिया। इस शहद की खास बात यह थी कि इसमें शहद के साथ मोम भी मिला हुआ था जो कि खाने में ऐसा लग रहा था जैसे कि मुंगफली को बारिक टुकड़ों में पीस कर मिलाया गया हो। खैर कुछ समय दुकान में बिताने के बाद हम लोग वापस पिथौरागढ़ की ओर आ गये।
 रास्ते में आते समय हम पर्यावरण पार्क में रुके। यहां से रात के समय पिथौरागढ़ का बहुत अच्छा नजारा दिखायी देता है। जिस समय हम यहां पर पहुंचे बिल्कुल अंधेरा हो गया था और पिथौरागढ़ रोशनी में डूबा हुआ दिखायी दे रहा था। जिसे देखना अपने आप में एक अद्भुत अहसास था। हालांकि इस समय हल्की सी ठंडी भी होने लगी थी पर नैनीताल के मुकाबले मुझे तो मौसम अच्छा लग रहा था। कुछ समय हमने यहां से रोशनी में नहाये पिथौरागढ़ के फोटो लिये और फिर एक जगह पर आकर बैठ गये। आसमान बिल्कुल साफ था और आसमान में छोटे-छोटे तारे हीरों के टुकड़ों की तरह बिखरे हुए थे। जिसे देखना मेरा पसंदीदा काम है। काफी समय तक हम नजरें गढ़ाये तारों को देखते रहे। हल्की सी ठंडी होने के बावजूद भी उस शाम में ऐसा कुछ था जो हमें वहीं बांधे हुए था। हालांकि मैं अकसर तारों भरा आसमान देखती हूं पर उस दिन जो बात थी वो पहले कभी महसूस नहीं हुई। तारों के बीच से कभी-कभी सैटेलाइट गुजरता हुआ भी दिख रहा था जिसे देख कर टूटते हुए तारे का सा अहसास हो रहा था। कुछ देर वहीं बैठे रहने के बाद आखिरकार हमें वापस आना ही पड़ा क्योंकि अंधेरा गहराता जा रहा था। हम गाड़ी में बैठे और वापस लौट लिये। वापस लौटने के बाद हमने कुछ देर गप्पें मारी और बातों ही बात मैं मेरा अगली सुबह अकेले ही भाटकोट जाने का प्लान बन गया।

सुबह करीब 5.30 बजे मैं उठी। मौसम में हल्की सी ठंडक थी। मैं अकेले ही भाटकोट की ओर निकल गयी। सुबह के समय पिथौरागढ़ में न के बराबर हलचल थी। सब्जी वाले अपनी आढ़त लगाने की तैयारी कर रहे थे। बाजार बिल्कुल सुनसान था। कोई-कोई दुकान वाले ही दुकानों को खोलने की तैयारी कर रहे थे। कुछ सफाई कर्मचारी सफाई करने में लगे थे। मैं गांधी चैक होते हुए सिलथाम चैराहे की ओर पहुंची और वहां से आगे भाटकोट की ओर निकल गयी। मुझे बताया गया था कि भाटकोट से भी हिमालय का अच्छा नजारा दिखायी देता है और पिथौरागढ़ भी एक दूसरे ही मूड में दिखता है।

मैं सड़क के रास्ते आगे निकल गयी। इस समय माॅर्निंग वाॅक करते हुए काफी लोग नज़र आ रहे थे। पिथौरागढ़ अब काफी आधुनिक शहर हो गया है। यहां पुराने जमाने के मकानों के निशान कम ही दिखे। ज्यादातर मकान आधुनिक स्टाइल के ही दिखे। यहां अपर जिलाधिकारी जैसे लोगों के मकान और कार्यालय ज्यादा दिखायी दिये। मुझे लगा कि शायद यह पुलिस क्षेत्र भी था क्योंकि पुलिस कार्यालय और पुलिस आॅफिसर्स के भी काफी मकान इस इलाके में दिखायी दे रहे थे और जगह भी काफी साफ-सुथरी और अच्छी लग रही थी। अब सूर्योदय हो गया था पर काफी चलने के बाद भी जब मुझे हिमालय नजर नहीं आया तो मैंने एक बच्ची से रास्ता पूछा। उसने बताया कि मैं सही रास्ते पर हूं थोड़ा आगे जाने पर मुझे हिमलाय दिखायी दे जायेगा। वो बच्ची स्कूल ड्रेस में थी और इतनी सुबह शायद ट्यूशन पढ़ने जा रही होगी। खैर कुछ देर चलने के बाद में मुख्य पाइंट पर पहुंच भी गयी।
जब मैं यहां पर पहुंची तो एक आदमी एक बच्चे की बुरी तरह शिकायत कर रहा था और कह रहा था कि - इसने इस जगह इतनी शराब की बोतलें इकट्ठा करके रखी हैं और स्कूल जाने के बहाने यह यहां आकर मटरगश्ती करता है और जब मैंने इसे डांठा तो मुझे कहता है ‘अबे मास्टर तुझे तो मैं देख लूंगा।’ गुस्से में भुनभुनाते हुए कुछ देर बाद वो शिक्षक महोदय वहां से चले गये और माहौल में कुछ शांति आयी। वैसे उन शिक्षक महोदय का गुस्सा तो जायज था खैर मैं जिस तरह का हिमालय देखने की उम्मीद कर रही थी वो नजारा मुझे नहीं मिल पाया क्योंकि मुझे पहुंचने में थोड़ी देरी हो गयी पर फिर भी काफी अच्छे शाॅट्स मिल गये। कुछ समय इस जगह पर बिताने के बाद मैं वापस लौट गयी। मुझे वो सुबह वाली लड़की इस समय भी मिली और उसने मुझसे पूछ भी लिया था कि - दीदी आपको वो जगह मिल गयी थी ? 
जब मैं बाजार के इलाके में पहुंची तो रास्तों को लेकर थोड़ा गड़बड़ा गयी इसलिये कुछ लोगों से रास्ता पूछना पड़ा। इस सब में हुआ कुछ यूं कि मैं पहुंच तो गयी पर सुबह के समय जिस गांधी चैक से आयी थी वो रास्ता इस समय नहीं था। इस समय मैं किसी दूसरे ही रास्ते से वापस लौटी पर जो भी था मेरी सुबह बहुत अच्छी बीती...

जारी...